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उसका दोष क्या है भाग - 7 15 पार्ट सीरीज

           उसका दोष क्या है(भाग-7)

            
  कॉलेज में दशहरे की छुट्टियां चल रही थीं। रमा अपने पूरे परिवार सहित अपने गांव गई हुई थी। उसके गांव में दशहरे की विशेष पूजा होती थी। रांची में भी दशहरे की धूम मची हुई थी। रांची का दशहरा मेला बहुत शानदार होता है,दूर-दूर से लोग देखने आते हैं। कई जगह मां दुर्गा की स्थापना की जाती है,सुंदर-सुंदर पंडाल बनते हैं। बहुत खूबसूरती से पूरा शहर सजा रहता है। देखने वाले दंग रहते हैं रांची की दुर्गा पूजा देखकर। विद्या ने एक दिन अपनी मां से कहा   -
   "चलो न माँ हम भी चलें दुर्गा पूजा देखने। सभी दुर्गा पूजा में खरीदारी करते हैं,हमारे यहां नहीं होती है। इस बार मेरे लिए भी नया सूट ले दो"।
   मां -  " दुर्गा पूजा नहीं मनती है ना हमारे यहां। मेला देखने के लिए हम लोग चलेंगे अष्टमी नवमी के दिन। और नए कपड़े अभी कर्मा में तुम्हें मिला ही है। फिर अभी क्यों लोगी। कर्मा में नई साड़ी पहन कर करम पूजा की थी"। 
  विद्या -   " माँ ले दो न,एक सूट तो ले दो! कॉलेज खुलने के बाद सभी लड़कियां अपनी अपनी ड्रेस दिखाएंगी तो मैं क्या दिखाऊंगी ? इसलिए माँ मेरे लिए एक सूट ले दो। कर्मा पूजा तो हम लोग लाल पाढ़ की सादी साड़ी पहनकर करते हैं तो वही साधारण सी साड़ी ली थी"।
     मां -  "अच्छा ठीक है मैं तेरे बाबा से बात करती हूं"|
  फिर कुछ रुककर कहा  -   "मेरे पास कुछ पैसे हैं, ले तू अपने लिए भी ले लेना और वीनू के लिए भी ले लेना अपनी पसंद से"।
उसे पैसे दे दिए और कहा जाकर अपनी पसंद से खरीद लेने के लिये। निकल पड़ी  विद्या बाजार के लिये। न तो उसे और न ही उसकी मां को ध्यान रहा -   रमा तो है नहीं तो विद्या को रांची बाजार अकेले ही जाना होगा खरीदारी करने। घर से निकलने के बाद कदम रमा के घर की ओर बढ़ गए। लगभ्ग पहुँच गई थी तब याद आया विद्या को -  अरे रमा तो है ही नहीं,वह तो अपने गांव गई है। अब मैं क्या करूं, कितनी भुलक्कड़ हूं। यदि घर में याद आता तो वीनू को ले लेती,भैया से ही अनुरोध करती साथ चलने के लिए। इतनी दूर आने के बाद लौटे कैसे। लौटने पर सभी मेरा मजाक उड़ाएंगे,कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की एक सूट नहीं खरीद सकती स्वयं से। इसलिए अब तो अकेले ही जाना होगा।
    सोचकर कर वह पलट गई सड़क की ओर जहां से ऑटो पकड़ कर वह रांची जाती। उसके कानों में बाइक के हॉर्न की आवाज आई,वह किनारे हो गई। आगे जाने के बदले बाइक उसके पास आकर रुक गयी । पलट कर देखा तो रमेश था।
    रमेश  -   "कहां जा रही हैं आप"।
   विद्या -  "वह वह मैं राँची जाने के लिए निकली थी"।
   रमेश  -  "परंतु यह रास्ता तो हमारे घर का है। आप मेरे घर आ रही थीं क्या मुझसे मिलने,क्योंकि रमा तो है नहीं। मुझे लगता है आप मुझसे मिलने ही आ रही होंगी"।
  विद्या  -   "नहीं - नहीं ....वह ....असल .... में ....मैं ......मैं....
   रमेश  -  "मैं समझ गया चलिए आइए बैठिए मेरी बाइक पर"।
  विद्या  -   "नहीं नहीं मैं चली जाऊंगी"।
     रमेश  -  " आप राँची ही जा रही थीं न"।
   विद्या -  " दरअसल मैं रांची जा रही थी ....... "
    रमेश  -   "रांची, परंतु कॉलेज तो बंद है। अच्छा अच्छा आज मेला घूमने की इच्छा हुई क्या"?
  विद्या  -  नहीं वह मुझे कुछ खरीदारी करनी है"।
   रमेश -   "ओहो चलिए मैं आपकी सहायता करूंगा खरीदारी करने में। क्या लेना है"?
  विद्या हिचकिचाई फिर उसने सोचा बाजार की जानकारी कुछ तो उसे है नहीं तो रमेश से शायद कुछ सहायता मिल जाए,इसलिए वो बाइक पर बैठ गई और बोली मैं अपने लिए सूट और अपनी छोटी बहन के लिए ड्रेस लेने जा रही हूं"।
    रमेश ने बाइक स्टार्ट किया और उसे लेकर वह बाजार आ गया। कुछ पंडाल घूमे,मूर्तियां देखी, फिर शास्त्री मार्केट आकर उसे दुकान के अंदर ले गया,जहां विद्या ने अपने लिए सूट औरअपनी छोटी बहन वीनू  के लिए एक टू-पीस ड्रेस खरीदी। कपड़ा चयन करने में रमेश ने उसकी सहायता की। इसी बीच रमेश ने भी एक सुंदर सा सूट पसंद किया और उससे भी पसंद करवाया उसकी पसंद से ही उसने वह सूट खरीदी और उसे पैक करवाया। वहां से निकलकर रमेश उसे पंजाब स्वीट हॉउस ले गया। विद्या के मना करने के बाद भी रमेश माना नहीं और अंदर प्रवेश करके कोने की एक टेबल पर जाकर बैठा। वहां उसने मिठाई,डोसा और कॉफी का आर्डर दिया। इतनी देर घूमने के बाद विद्या को भी भूख लग आई थी,परंतु रमेश के साथ उसे अकेले होटल जाने में हिचकिचाहट हो रही थी। लेकिन रमेश कहां मानने वाला था,वह उसे अन्दर ले ही आया था और अपनी पसंद से उसने ऑर्डर भी कर दिया था। नाश्ता के बाद उन दोनों ने कॉफी पी। उसके बाद रमेश फिर वहां से उसे लेकर नक्षत्र वन आया।
   विद्या  -   "बहुत देर हो गई है अब घर जाना चाहिए"।
    रमेश -   "थोड़ी देर हम लोग यहां बैठते हैं"।
     उसे लेकर अंदर गया। रमेश एक वृक्ष के नीचे बैठ गया और विद्या का भी हाथ पकड़ कर बैठाने लगा। विद्या उसके हाथ पकड़ने से थोड़ी घबड़ा गई।
   रमेश -  बस थोड़ी देर बैठ जाइए,मुझे आपसे कुछ बातें करनी हैं,उसके बाद मैं आपको आपके घर तक छोड़ दूंगा"।
  कहते हुए उसने विद्या को अपने पास बैठा लिया |
    विद्या -   "कहिए क्या कहना है"?
   रमेश  -  "आज भी मैं आपसे अपने उसी प्रश्न का उत्तर मांग रहा हूं। विद्या, मेरी जिंदगी में आने वाली आप पहली और आखिरी लड़की हैं। आप चाहें तो रमा से पूछ लीजियेगा,हमारी बस्ती में मेरे चरित्र के संबंध में कहीं से भी कुछ भी गलत नहीं सुना गया है। मैं गलत हूं भी नहीं। मैं तो आपसे शादी करना चाहता हूं। और यह मेरा प्रथम उपहार है,इसे स्वीकार कीजिए । अगली बार आप जब भी मिलिएगा इसको पहन के,ताकि मैं देख सकूं कि मेरी पसंद आपपर कैसी लगती है"।
     विद्या  -  "लेकिन मैं इसे कैसे स्वीकार करूं,क्या आपने मेरे लिए लिया था इसे ! आपकी बात से मुझे तो लगा आपने अपनी बहन के लिए लिया है"।
  रमेश  -  बहन के नाम पर बस रमा ही है,और वह स्वयं से खरीदना पसंद करती है। उसे कुछ भी लेना होता है तो भाइयों का सिर्फ बटुआ ही चाहिए होता है उसे। इसलिए मुझे उसे कुछ खरीद कर देने का अवसर अब तक नहीं मिला है। लगता है अपनी पसंद से उसके विवाह मे ही कुछ दे पाऊंगा। उसमें भी मुझे संदेह लगता है,उस समय भी कहेगी -
   "भैया मैं संग चलूंगी खरीदने"|
  करते हुए रमेश ने ठहाका लगाया। उसकी यह बात सुन विद्या मुस्करा पड़ी। ऐसी ही बातें करते कुछ और समय बीत गया। कुछ ही देर में शाम होने वाली थी  यह देख विद्या हड़बड़ा कर उठी और कहा - 
   "बहुत देर हो गई घर जाते रात हो जाएगी"।
   रमेश  -   "नहीं रात नहीं होगी बस पंद्रह से बीस मिनट में हम लोग पहुंच जाएंगे"।
    कहकर वह भी उठ गया। बाहर आए वे लोग। बाइक स्टार्ट करने के पहले रमेश ने कहा - 
   "विद्या अब आप से अगली मुलाकात कब होगी"।
  विद्या -   "अभी कैसे आ सकती हूं,कॉलेज तो बंद है"।
    रमेश  -   "परंतु लाइब्रेरी तो खुला है,क्या आप आजकल लाइब्रेरी नहीं जातीं" ? 
    विद्या  -  "परंतु इस बीच में तो लाइब्रेरी जाना भी मुश्किल है। कल से तो दिन में भी भीड़ होगी"।
  रमेश  -    "हां वह सही है। ऐसा कीजिए दशहरा के अगले दिन आइए,मैं रास्ते में आपका इंतजार करूंगा। या कहें तो आपके घर से ले लूँ"?
   विद्या  -  "नहीं नहीं मैं घर से निकल कर आऊंगी आप मुझे रास्ते में ले लीजिएगा"।
  वहां से आए रमेश ने उसके घर से थोड़ी दूर पर उसे उतार दिया और एक बार फिर दशहरे के अगले दिन मिलने की याद दिला वापस मुड़ गया। विद्या थोड़ी देर उसे दूर होता देखती रही फिर वह भी मुस्कुराती हुई अपने घर की ओर चली। इतने दिन से उसके दिल में जो हलचल सी मची थी आज वह शांत थी। विद्या को समझ आ गया उसके दिल की हलचल का कारण। उसका दिल भी रमेश की ओर आकर्षित हो गया था,और उसके प्यार को स्वीकार करने के लिए ही कह रहा था। उसके प्यार को स्वीकार करके विद्या का मन मयूर नाच उठा था। घर में प्रवेश किया,पहले अपने कमरे में गई। वहाँ रमेश का दिया हुआ उपहार अलग रखा,फिर वीनू की ड्रेस लेकर बाहर आई। वीनू को उसकी ड्रेस दिया। 
  वीनू  -   " दीदी तुमने अपने लिए क्या लिया वह तो दिखाओ"।
   विद्या  -   "नहीं, अभी नहीं ! जब पहनूंगी तब दिखा दूंगी। अभी दिखाने से पुराना हो जाएगा"।
   माँ  मुस्कुरा उठी -  " दिखाने से कहीं पुराना होता है, पहनने से पुराना होता है। पागल तू भी न कमाल करती है"।
  
                            क्रमशः 

      निर्मला कर्ण

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1 Comments

Varsha_Upadhyay

03-Jun-2023 05:58 AM

बहुत खूब

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